
हे गुरु ज्ञान गुणों के सागर,
प्रणाम तुम्हे हम करते हैं,
बुद्धि विवेक से सींचा हमको,
हम तेरा अभिनंदन करते हैं।

हम सबको सच्चा ज्ञान देकर,
तुम खुशियाँ आपार दे जाते हो,
मात-पिता के बाद तुम्ही,
सच्चे हितैषी कहाते हो।

कच्ची मिटी जैसे हम अज्ञानियों को,
पक्का घड़ा बनाते हो
दूर कर हमारे दुर्गुणों को,
पानी जैसी शीतलता का भाव जागते हो।

काम क्रोध से कर दूर हमें,
नैतिकता का पाठ पढ़ाते हो,
हमारे उज्वल भविष्य के लिए,
अपना ज्ञान लुटाते हो।

कभी क्रोध कर लेते हो,
कभी दया दिखाते हो,
दोनों के मेलजोल कर करके,
ज्ञान का मार्ग दिखाते हो।

बिन गुरु सच्चा ज्ञान संभव नहीं,
सत्य का मार्ग प्रशस्त कराते हो,
जीवन में कठिनाईयाँ आने से पहले,
उनसे लड़ने की कला सिखाते हो।

ज्ञान तो हर कोई देता,
पर प्रमाण तुम्ही दे पाते हो,
समय समय पर लेकर परीक्षा,
सत्यापन की मुहर लगाते हो।

हम नतमस्तक हैं समक्ष तुम्हारे,
तुम्ही हमें जीवन रूपी सागर में उतारे,
पार करेंगे हर बाधा हम,
तुम्हारे दिए ज्ञान के सहारे।

हे गुरु ज्ञान गुणों के सागर,
प्रणाम तुम्हे हम करते हैं,
बुद्धि विवेक से सींचा हमको,
हम तेरा अभिनंदन करते हैं।
